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""रूप भले ही भींनन होगा, पर प्यार एकदम खालिस होगा।'

एक दिन कि बात हैं आरुही सुबह पार्क में टहलते हुए जा रही थी तभी उसे एक रोती हुई बच्ची मिली। आरुही ने उससे रोने का कारण पूछा, तो लड़की ने बताया कि वह जिस गुड़िया से खेल रही थीं, वह इसी पार्क में कही खो गईं हैं। आरुही ने उस बच्ची को उसकी गुड़िया ढूंढ लाने का आस्वाशन दिया जिससे वह बच्ची चुप हो सके  आरुही ने गुड़िया ढूंढ़ने के लिए समय माँगी और फिर दूसरे दिन गुड़िया लाने का वादा करके वहाँ से चली गई, पर गुड़िया ना तो आरुही को मिली और ना ही उस बच्ची को। आरुही ने गुड़िया की तरफ से एक काल्पनिक पत्र उस बच्ची को लिखी और जब वह बच्ची पार्क में गुड़िया पाने की आशा में आई तो आरुही ने वह पत्र उस बच्ची को पढ़ कर सुनाया। पत्र इस प्रकार था ' कृप्या रोना मत, मै समय समय पर उस गुड़िया के बारे में तुम्हें लिखती रहूँगी, बस तुम रोना मत।' अब आरुही रोज़ उस खोई हुई गुड़िया की तरफ से काल्पनिक पत्र लिखने लगी और लगभग रोज़ ही उस बच्ची को पढ़ कर सुनाती जो कि यात्रा का काल्पनिक वर्णन हुआ करता था। आरुही ने इस काल्पनिक लेकिन रोचक वर्णन ने उस बच्ची को रोने नहीं दिया। वह खुशी-खुशी अपनी गुड़िया की घुमक्कड़ी के किस्से सुनाने लगी। अब व